अमर सिंह
काशी भारतीय धार्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक जीवन का एक अनूठा केंद्र है। इसे धर्मनगरी भी कहा जाता है क्योंकि यहाँ विभिन्न धार्मिक परंपराएँ यथा हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख और मुस्लिम आदि सदियों से सह-अस्तित्व में रही हैं। प्रस्तुत लेख काशी की धार्मिक संस्कृति तथा सामाजिक समरसता का समाजशास्त्रीय विश्लेषण प्रस्तुत करता है जिसमें धार्मिक स्थलों, साधु-संन्यासी परंपराओं, लोकसंस्कृति एवं त्योहारों के माध्यम से उत्पन्न सामूहिक चेतना का अध्ययन किया गया है। काशी में नागा, रामानंदी, औघड़ और निर्गुण संत परंपराएँ सामाजिक एकता, नैतिक अनुशासन, सेवा भाव के माध्यम से स्थायी सांस्कृतिक निरंतरता का प्रतीक हैं।यहाँ होने वाली गंगा आरती, देव दीपावली, रामलीला एवं अन्य उत्सव न केवल धार्मिक अनुष्ठान हैं अपितु जाति, वर्ग और पंथ के पार सामूहिक सहभागिता और सह-अस्तित्व की भावना को सशक्त करते हैं। आधुनिक युग में शहरीकरण, राजनीतिक ध्रुवीकरण और धार्मिक पर्यटन के बाजारीकरण जैसी चुनौतियों के बावजूद काशी में पारंपरिक सहिष्णुता तथा आधुनिक नागरिक मूल्यों का संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। शिक्षा, संवाद और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के माध्यम से सामाजिक समरसता को पुनर्स्थापित किया जा सकता है। इस लेख से यह स्पष्ट होता है कि काशी की धार्मिक विविधता केवल आध्यात्मिक महत्त्व नहीं रखती अपितु यह सामाजिक स्थिरता, सह-अस्तित्व और सांस्कृतिक एकता का जीवंत उदाहरण है।
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