डॉ० चन्द्रा सत्या प्रकाश
भारत में चुनावी बॉन्ड योजना राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वितीय जरिया है। चुनावी बॉन्ड एक वितीय वचन पत्र की तरह है जिसे भारत का कोई भी नागरिक या कम्पनी भारतीय स्टेट बैंक के निर्धारित शाखाओं से ख़रीद सकता है और अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दलों को गोपनीय तरीक़े से दान कर सकता है। भारत में चुनावी बॉन्ड योजना को केंद्र सरकार ने वर्ष 2017 में लाया था। वर्ष 2017 में चुनावी बॉन्ड के ज़रिए चुनावी चंदा को संस्थागत रूप दिया गया था। इस योजना को केंद्र सरकार ने जनवरी 2018 में क़ानूनन लागू कर दिया था। इस चुनावी बॉन्ड योजना को संसद में धन विधेयक के रूप में पारित कि या गया था यानी कि केंद्र सरकार ने इस बॉन्ड को बहुत महत्व दिया था।
चुनावी बॉन्ड योजना का विरोध भारत के विपक्षी राजनीतिक दलों, चुनाव आयोग, विधि आयोग, एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म इत्यादि द्वारा विरोध किया गया था। चुनावी बॉन्ड योजना का विरोध करने वालों का तर्क है कि इस योजना के द्वारा सत्ता में रहने वाले राजनीतिक दल अथवा गठबंधन को सर्वाधिक लाभ हुआ है। दूसरी तरफ विपक्षी राजनीतिक दलों अथवा गठबंधन को चुनावी बॉन्ड से बहुत कम चंदा मिला है। इस योजना को भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म द्वारा चुनौती दिया गया। भारत के सर्वोच्च न्यायालय की पाँच न्यायाधीशों की बेंच ने इस योजना को फ़रवरी 2024 में असंवैधानिक करार दिया एवं इस योजना को काले धन को बढ़ावा और चुनावी फ़ंडिंग में अपारदर्शिता का प्रतीक माना। इस योजना ने भारत में निष्पक्ष चुनाव एवं लोकतंत्र पर हमला किया है। इस संदर्भ में इस योजना का गहन विश्लेषण आवश्यक है। यह शोध पत्र भारत में निष्पक्ष चुनाव एवं लोकतंत्र पर चुनावी बॉन्ड के प्रभाव का विश्लेषण करता है।
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